इस बीमारी में हरगिज न करें शीर्षासन

इस बीमारी में हरगिज न करें शीर्षासन

सेहतराग टीम

गर्दन, पीठ आदि में अकसर दर्द, जकड़न बना हो तो आमतौर पर इसे हड्डी की बीमारी स्‍पोंडीलोसिस से जोड़ा जाता है। यह रीढ़ की हड्डी के जोड़ों में होने वाले क्षरण की बीमारी है। स्‍पोंडीलोसिस को ऑर्थोआर्थराइटिस का एक प्रकार माना जाता है। भारत में हर वर्ष करीब एक करोड़ लोग इस बीमारी के शिकार बनते हैं।

फैलाव

बढ़ती उम्र के साथ लोग इस बीमारी के ज्‍यादा शिकार बनते हैं। आजकल कम उम्र के लोगों में भी यह बीमारी दिखने लगी है क्‍योंकि आम भारतीयों के शरीर में विटामिन डी और कैल्सियम दोनों की कमी होने के साथ-साथ लंबी देर तक कंप्‍यूटर पर काम करने के कारण रीढ़ की हड्डी प्रभावित होती है। सामान्‍य एक्‍स रे से पता चल जाता है कि वास्‍तव में यही बीमारी है कि नहीं। वैसे तो इसे लेकर ज्‍यादा परेशान होने की जरूरत नहीं होती क्‍योंकि दवाइयों और योग, व्‍यायाम से यह नियंत्रण में रहता है। हालां‍कि बीमारी पूरी तरह ठीक नहीं होती। इस बीमारी के बारे में कुछ ऐसी चीजें जानने लायक है जो बीमारी को खतरनाक बनने से बचा सकती हैं।

क्‍या कहते हैं डॉक्‍टर

दिल्‍ली के जाने-माने हड्डी रोग विशेषज्ञ और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान के पूर्व निदेशक डॉक्‍टर पी.के. दवे कहते हैं कि सबसे पहले तो ये जान लें कि इस बीमारी का नाम स्‍पोंडीलोसिस है न कि स्‍पोंडीलाइटिस। दूसरी बात, ये सच है कि इस बीमारी में योग या व्‍यायाम से काफी फायदा होता है मगर यदि किसी को ये बीमारी है तो उसे शीर्षासन जैसा आसन हरगिज नहीं करना चाहिए। वो इसलिए क्‍योंकि शीर्षासन के दौरान यदि गलती से रीढ़ की कोई डिस्‍क खिसक गई तो मरीज को लकवा मार सकता है। इस हालत में सिर्फ ऑपरेशन से ही मरीज ठीक हो सकता है।

डॉक्‍टर के संपर्क में रहें

दूसरी बात, भले ही योग की सामान्‍य क्रियाएं इसमें लाभदायक हों मगर बिना दवाओं के वो भी पूर्ण कारगर नहीं होंगी। इसलिए मरीज को इस बीमारी की दवा लेने के लिए योग्‍य चिकित्‍सक के संपर्क में जरूर रहना चाहिए। डॉक्‍टर दवे के अनुसार उनके पास इसके इलाज के लिए खुद एक योग विषेशज्ञ आ चुके हैं जिन्होंने शीर्षसन कर लिया और उन्हें लकवा मार गया था।

क्‍या हैं लक्षण

गर्दन में किसी चीज को निगलने में दर्द इसका प्रमुख लक्षण है। वैसे कई बार गर्दन में दर्द होता है और लोगों को भ्रम हो जाता है कि हार्ट अटैक हो गया है। ये पोस्‍चर यानी बैठने के तरीके के कारण भी होता है अत: लोगों को इसे लेकर सतर्क रहना चाहिए। यह पाया गया है कि मजदूरों में एपोंडीलोसिस के लक्षण सामने नहीं आते क्योंकि वे हमेशा कठिन परिश्रम करते हैं ओर उनकी मांसपेशियां मजबूत होती है।

योग गुरु की राय

जाने-माने योग गुरु सुनील सिंह का कहना हैकि स्पोंडीलेसिस में योग बेहद फायदेमंद होता है और कुछ सूक्ष्म यौगिक क्रियाओं के निरंतर अभ्यास से इस बीमारी में आराम मिलता है। इस बीमारी के शिकार लोगों के लिए कुछ क्रियाएं प्रतिबंधित भी हैं। यह बीमारी वायु जनित बीमारी मानी जाती है इसलिए इस रोग से ग्रसित लोगों को सबसे पहले नियमित रूप से वायु मुद्रा के अभ्यास की सलाह दी जाती है। वायु मुद्रा का प्रतिदिन 10 मिनट या इससे अधिक अभ्यास किया जाना चाहिए। इसके अलावा चूंकि स्पोंडीलोसिस रीढ की हड्डी से जुडी बीमारी है इसलिए ग्रीवा शक्ति विाकस क्रियाएं करने की सलाह दी जाती है। इसके तहत छह क्रियाएं होती हैं। सुनील सिंह भी कहते हैं कि स्पोंडीलोसिस के मरीज ऐसा अभ्यास न करें जिसमें आगे की ओर झुकना पडे।

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